While on vaccation we went to Oxford for a day. I stood in awe of the colleges there. Normally when I see any world famous colleges, the first thing I wish is to get a chance to study there. But seeing Oxford the first thing that came to my mind was I hope my children can some day study here. This thought made me think about the changes in me and inspired me to write this. I hope all can enjoy it;-)
आज तय कर आई हूँ वो एक लम्बा सा सफर,
जब मैं माँ बनी छोड़ अपनी माँ का घर.
मैया और बाबुल मानो जैसे गंगा नहाए,
कन्या का दान करके मुझे विदा कर आये.
पहले उड़ती फिरती थी तितली मैं नादान,
आज रखूँ पिया के कुल का मैं मान.
रीतियों को रुढ़ियां मैं कहती थी,
बागी हो आधुनिकता की धारा में बहती थी.
रुढ़िवादिता से अब आ गई मुझको रीतियाँ,
घर चलाने की मैं भी खूब सीख गयी नीतियाँ.
कन्या से कुमारी बनी, कुमारी से बनी ब्याहता,
सोचा, संसार पूरा कर दिया तूने विधाता.
विधाता की माया न कभी कोई जान पाया,
रोता बिलखता नन्हा एक मेरी आँखों का तारा आया.
माँ बनकर तो मेरी दुनिया ही जैसे बदल गयी,
होश गंवाकर कलह मचाकर फिर मैं संभल गयी.
समय ने एक माँ का कर्तव्य भी मुझे सिखा दिया,
मेरी माँ का तप और जप भी मुझे दिखा दिया.
पहले लगता था जैसे मुट्ठी में दुनिया हमारी थी,
अपना मुकाम, अपनी खुशियाँ ही बस हमको प्यारी थीं.
अब तो दुनिया, अब तो मंजिलें बस बच्चों की हो गयी हैं,
उनका चरित्र, उनकी खुशियाँ ही हमको प्यारी हो गयी हैं.
ऊंची शिक्षा, ज्ञान विज्ञान पहले खूब लुभाता था,
नयी खोज, नयी राह, नयी सोच से मन उकसाता था.
ऑक्सफोर्ड विश्व विद्यालय देख कर मन आनंद से भर आया,
बस बच्चे ऊंची शिक्षा प्राप्त करें, अब ये विचार घर आया.
प्रभु, अब तो चारित्र्यवान बच्चों से ही संसार मेरा महकता रहे,
उनकी प्रगति देखकर ही मन का पंछी चहकता रहे.
3 comments:
wow........very deep dear. Thank god I can read Hindi well enought to enjoy that. Tune to puri autobiography likhdi re!
thanx meeaaooww! I don't know if I have added the right number of e's, a's, o's and w's.
yes, actually i forced myself to write this poem. so you know how it is. I wish a inner voice led me to write something and I could create something beautiful.
thanx anyway. enjoyed your comment.
Ma tuje salaam......you know when I went to Oxford I had similar feelings........I don't know why I felt it is attainable, I missed the boat but my kids won't..
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